आखिर क्यों जानते-बूझते डाली जा रही हैं जान जोखिम में!
दुर्घटना में सुरंग में फंसे मजदूरों में से दो उत्तराखंड के हैं जबकि शेष राज्य से बाहर के हैं। स्थानीय राजनीतिज्ञ कहते हैं कि जब चार धाम यात्रा शुरू हुई थी, तो केन्द्र सरकार ने दावा किया था कि यह स्थानीय युवाओं को बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध कराएगी। इन दोनों तथ्यों को सामने रखें, तो बहुत कुछ समझ में आता है।
इंजीनियरिंग भूवैज्ञानिक वरुण अधिकारी कहते हैं कि ‘सिलक्यारा में हुई दुर्घटना सुरंग बनाने के जरूरी सिद्धांतों के प्रति गैरपेशेवर टनलिंग तरीकों और अनदेखियों का क्लासिक मामला है। यह उचित प्रक्रियाओं पर ध्यान रखते हुए उनके महत्व को भी रेखंकित करता है, खासतौर से सुरंग की खास स्थिति और आसपास की पहाड़ी चट्टानों पर पड़ने वाले असर को नजरंदाज़ करने का मामला है।
भूकंप भूविज्ञान और इंफ्रास्ट्रक्चर एक्सपर्ट वैज्ञानिक डॉ. सी. पी. राजेन्द्रन भी भौंचक हैं। वह कहते हैं कि ‘किन्हीं मानक ऑपरेटिंग प्रक्रियाओं का यहां पालन नहीं किया जा रहा और उनके गंभीर परिणाम हो रहे हैं। पहले, पहाड़ों में इस किस्म की खोदाई निपुण भूवैज्ञानिकों की विश्वसनीय देखरेख में की जाती थी, जो सभी सुरक्षात्मक उपायों पर निगाह रखते थे। 2019 में जब सुरंग धंस गई थी, तब भी अधिकारियों ने सुरक्षा उपाय करने या उस दुर्घटना की समीक्षा करने का आदेश क्यों नहीं दिया था?’